Friday 12 May 2017

फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल

फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल  १२ मई १८२० -१३ अगस्त १९१०) को आधुनिक नर्सिग आन्दोलन का जन्मदाता माना जाता है। वर्तमान युग में अस्पतालों के प्रबंधन और रोगियों के स्वास्थ्य लाभ में नर्सों का विशेष महत्त्व है. नर्सों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य तक की स्थिति इसके सर्वथा विपरीत थी. नर्स का कार्य बहुत घटिया समझा जाता था. निम्न वर्ग की महिलाएं ही इस पेशे में आती थीं. उनमें से अधिकांश अनपढ़ और चरित्रहीन होती थीं और नशा किया करती थीं. उन्हें अपने कार्य के लिए कोई व्यवस्थित ट्रेनिंग भी नहीं मिलती थी.

इस पेशे को सम्मान दिलाने का श्रेय ब्रिटेन की फ्लोरेंस नाइटिंगेल को जाता है. उनका जन्म १२ मई  1820 में एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। लेकिन उच्च कुल में जन्मी फ्लोरेंस ने सेवा का मार्ग चुना।  उस युग के ब्रिटिश वैभवपूर्ण जीवन के प्रति उन्हें कोई आकर्षण नहीं था और दुखी मानवता के लिए उनके ह्रदय में अपार संवेदना थी. दया सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल " लेडी विद लैंप" (दीपक वाली महिला) के नाम से प्रसिद्ध हैं।
1840 में इंग्लैंड में भयंकर अकाल पड़ा और अकाल पीडितों की दयनीय स्थिति देखकर वे बेचैन हो गईं. अपने एक पारिवारिक मित्र डॉ. फाउलर से उन्होंने नर्स बनने की इच्छा प्रकट की. उनका यह निर्णय सुनकर उनके परिजनों और मित्रों में खलबली मच गई. उनकी माँ को यह आशंका थी कि उनकी पुत्री किसी डाक्टर के साथ भाग जायेगी. ऐसा उन दिनों शायद आम था.

इतने प्रबल विरोध के बावजूद फ्लोरेंस ने अपना इरादा नहीं बदला. विभिन्न देशों में अस्पतालों की स्थिति के बारे में उन्होंने जानकारी जुटाई और अपने शयनकक्ष में मोमबत्ती जलाकर उसका अध्ययन किया. उनके दृढ संकल्प को देखकर उनके माता-पिता को झुकना पड़ा और उन्हें कैन्सर्वर्थ संस्थान में नर्सिंग की ट्रेनिंग के लिए जाने की अनुमति देनी पड़ी.
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१८४५ में परिवार के तमाम विरोधों क्रोध के पश्चात भी उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा का व्रत लिया। दिसंबर १८४४ में उन्होंने चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने बनाने का कार्यक्रम आरंभ किया था। बाद में रोम के प्रखर राजनेता सिडनी हर्बर्ट से उनकी मित्रता हुई।
नर्सिग के अतिरिक्त लेखन और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी पर उनका पूरा ध्यान रहा। फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर १८५४ में उन्होंने ३८ स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा। इस समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए ही उन्होंने लेडी विद लैंप की उपाधि से सम्मानित किया गया। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। लेकिन युद्ध में घायलों की सेवा सुश्रूषा के दौरान मिले गंभीर संक्रमण ने उन्हें जकड़ लिया था। १८५९ में फ्लोरेंस ने सेंट थॉमस अस्पताल में एक नाइटिंगेल प्रक्षिक्षण विद्यालय की स्थापना की। इसी बीच उन्होंने नोट्स ऑन नर्सिग पुस्तक लिखी। जीवन का बाकी समय उन्होंने नर्सिग के कार्य को बढ़ाने इसे आधुनिक रूप देने में बिताया। १८६९ में उन्हें महारानी विक्टोरिया ने रॉयल रेड क्रॉस से सम्मानित किया। ९० वर्ष की आयु में १३ अगस्त, १९१० को उनका निधन हो गया।
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उनसे पहले कभी भी बीमार घायलो के उपचार पर ध्यान नहीं दिया जाता था किन्तु इस महिला ने तस्वीर को सदा के लिये बदल दिया। उन्होंने क्रीमिया के युद्ध के समय घायल सैनिको की बहुत सेवा की थी। वे रात-रात भर जाग कर एक लालटेन के सहारे इन घायलों की सेवा करती रही इस लिए उन्हें लेडी विथ दि लैंप का नाम मिला था उनकी प्रेरणा से ही नर्सिंग क्षेत्र मे महिलाओं को आने की प्रेरणा मिली थी।
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