मुहम्मद शाह ((1748 – १७०२)
जिन्हें रोशन अख्तर भी कहते थे, मुगल सम्राट था। मुहम्मद शह की मृत्यु १७४८ में ४६ वर्ष की आयु में
हुई थी। मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर ने लम्बे समय 1719 से
1748 ई. तक मुग़ल साम्राज्य पर
शासन किया। रफ़ीउद्दौला की मृत्यु के बाद सैय्यद बन्धुओं ने उसको गद्दी पर
बैठाया था। वह जहानशाह का चौथा बेटा था। इसके काल में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में मुर्शिद कुली ख़ाँ, अवध में सआदत ख़ाँ तथा दक्कन में निजामुलमुल्क
ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर लीं। इसके अतिरिक्त इसके काल में गंगा तथा दोआबक्षेत्र में रोहिला सरदारों ने भी अपनी
स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी।
मोहम्मद शाह रंगीला मुगल इतिहास
में पैदा होने वाले शायद अकेले ऐसे बादशाह हैं जिसके शासनकाल में सल्तनत डांवाडोल थी
और दिल्ली दरबार ‘शराब और शबाब’ के रंग में सबसे ज्यादा चूर था। रंगीला मुगल 17 साल
की उम्र में 27 सितम्बर, 1719 को गद्दी पर 12वें मुगल बादशाह के रूप में तख्तनशीं हुए
थे। उन्होंने कुल 28 साल 212 दिनों तक सत्ता संभाली और 45 साल की उम्र में 27 अप्रैल,
1748 को इनकी मौत हो गयी थी। वह अपना अधिकांश समय पशुओं की
लड़ाई देखने तथा वेश्याओं और मदिरा के बीच गुजारता था। इसी कारण उसे 'रंगीला' के
उपनाम से भी जाना जाता था।
दरबार में सैय्यद बन्धुओं
के बढ़ते हुए प्रभुत्व के कारण एक रोष उत्पन्न हुआ तथा उन्हें समाप्त करने का
षडयंत्र किया गया। इस षडयंत्र में ईरानी दल का नेता मुहम्मद अमीन ख़ाँ, मुहम्मदशाह
तथा राजमाता कुदसिया बेगम शामिल थीं। 8 अक्टूबर, 1720 को हैदर बेग़ ने छुरा घोपकर
हुसैन अली की हत्या कर दी। अपने भाई का बदला लेने के लिए अब्दुल्ला ख़ाँ ने विशाल
सेना लेकर मुहम्मदशाह के विरुद्ध चढ़ाई कर दी। 13 नवम्बर, 1720 को हसनपुर के स्थान
पर अब्दुल्ला ख़ाँ हार गया, उसे बन्दी बना लिया गया और विष देकर मार डाला गया। इस प्रकार मुहम्मदशाह के शासनकाल में सैय्यद
बन्धुओं का पूरी तरह से अन्त हो गया।
कलाप्रेमियों के लिए रंगीला
मुगल एक फरिश्ता था। जिसने औरंगजेब के वक्त से शराब और नाच-गाने पर लगे प्रतिबंध को
हटाया था। रंगीले मुगल ने एक तवायफ कुदशिया बेगम से शादी भी की थी। जिसकी वजह से वो
कट्टर इस्लामी और शाही खानदान के अन्य सदस्यों की आंखों में खटकते रहते थे। उसे इन
के विरोध की कोई परवाह नहीं थी और पूरी जिंदगी अपने ही अंदाज में गुजारी।
कहा जाता है कि मोहम्मद शाह रंगीला ने ही मुगल दरबार में कव्वाली शुरू करवाई थी। यही नहीं, ख्याल गायकी को प्रोत्साहन देकर उसे और निखारने में मदद की थी। इसी मुगल बादशाह ने तुर्क कपड़ों से इतर शेरवानी का चलन शुरू किया था। इसके अलावा दरबार में दिल्ली की मशहूर तवायफों के मुजरों को आयोजित करवाने की परंपरा भी मोहम्मद शाह ने ही दोबारा शुरू की थी।
ये और बात है कि जिस वक्त मोहम्मद शाह शराब और शबाब के रंग में मशगूल थे, उसी दौर में नादिर शाह ने दिल्ली को लूटा था। इतिहास में दर्ज है कि मोहम्मद शाह रंगीला आखिरी बादशाह थे, जो कोहिनूर हीरे से सजे तख्त-ए-ताऊस पर बैठते थे। बाद में उसे नादिरशाह अपने साथ ईरान लेकर चला गया था।
रंगीले के दौर में ही दक्खन में मराठा सेनापति बाजीराव के हाथों मुगल सल्तनत अपने एक सूबे के बाद दूसरा सूबा खोती जा रही थी। फ़ारस के शासक नादिरशाह ने 1739 में मुहम्मदशाह के समय में ही दिल्ली पर आक्रमण किया था।
कहा जाता है कि मोहम्मद शाह रंगीला ने ही मुगल दरबार में कव्वाली शुरू करवाई थी। यही नहीं, ख्याल गायकी को प्रोत्साहन देकर उसे और निखारने में मदद की थी। इसी मुगल बादशाह ने तुर्क कपड़ों से इतर शेरवानी का चलन शुरू किया था। इसके अलावा दरबार में दिल्ली की मशहूर तवायफों के मुजरों को आयोजित करवाने की परंपरा भी मोहम्मद शाह ने ही दोबारा शुरू की थी।
ये और बात है कि जिस वक्त मोहम्मद शाह शराब और शबाब के रंग में मशगूल थे, उसी दौर में नादिर शाह ने दिल्ली को लूटा था। इतिहास में दर्ज है कि मोहम्मद शाह रंगीला आखिरी बादशाह थे, जो कोहिनूर हीरे से सजे तख्त-ए-ताऊस पर बैठते थे। बाद में उसे नादिरशाह अपने साथ ईरान लेकर चला गया था।
रंगीले के दौर में ही दक्खन में मराठा सेनापति बाजीराव के हाथों मुगल सल्तनत अपने एक सूबे के बाद दूसरा सूबा खोती जा रही थी। फ़ारस के शासक नादिरशाह ने 1739 में मुहम्मदशाह के समय में ही दिल्ली पर आक्रमण किया था।
बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में 500 घुड़सवार
लेकर मार्च, 1737 ई. में उसने दिल्ली पर चढ़ाई की, परन्तु सम्राट ने इसका कोई
विरोध नहीं किया। बंगाल, अवध, गुजरात और हैदराबाद
के मुगल सूबेदारों ने रंगीले मुगल के दौर में ही अपनी अलग सल्तनतें खड़ी की थीं।
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